इबोला वायरस रोग (EVD) इबोला वायरस की वजह से होती है। आम तौर पर इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के दो दिनों से लेकर तीन सप्ताह के बीच दिखते है, जिसमें बुखार, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द होता है। आम तौर पर मतली, उल्टी और डायरिया होने के साथ-साथ जिगर और गुर्दाका कामकाज धीमा हो जाता है। इस स्थिति में, कुछ लोगों को खून बहने की समस्या शुरू हो जाती है।
यह वायरस संक्रमित जानवर (सामान्यतया बंदर या फ्रुट बैट (एक प्रकार का चमगाद्ड़)) के खून या [शरीर के तरल पदार्थ]] के संपर्क में आने से होता है। प्राकृतिक वातावरण में हवा से इसके फैलने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। ऐसा माना जाता है कि फ्रुट बैट (एक प्रकार के चमगादड़) प्रभावित हुए बिना यह वायरस रखते और फैलाते हैं। जब मानवीय संक्रमण होता है तो यह बीमारी लोगों के बीच फैल सकती है।
संक्रमित बंदरों और सुअरों से मनुष्य में यह बीमारी फैलने से रोकना, इसके रोकथाम का सर्वोत्तम उपाय है। जानवरों में संक्रमण की जांच करके और संक्रमण पाए जाने पर उनके शरीर को समुचित तरीके से नष्ट करके इसकी रोकथाम की जा सकती है। मांस को उचित तरीके से पकाना और मांस से संबंधित कामकाज करते समय हाथों पर निवारक कपड़े पहनने से भी इसके सहायता मिल सकती है। ऐसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के आसपास होने पर आप निवारक कपड़े और दस्ताने पहनना अनिवार्य है हैं। बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के शरीर के तरल पदार्थों और उत्तकों के नमूनों का रख-रखाव विशेष सावधानी के साथ करना चाहिए।
इस बीमारी के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है; संक्रमित लोगों की सहायता की कोशिशों में उन्हें ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी (पीने के लिए थोड़ा-सा मीठा और नमकीन पानी देना) या इंट्रावेनस द्रव्य देना शामिल है। इस बीमारी में मृत्य दर बेहद उच्च है: औसतन इस वायरस के संक्रमित होने वाले 50% से 90% तक लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। ईवीडी की पहचान सबसे पहले सूडान और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में की गई थी। इस बीमारी का प्रकोप आम तौर उप-सहारा अफ्रीका के उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में होता है। 1976 (जब पहली बार इसकी पहचान की गई थी) से 2013 तक, हर वर्ष 1,000 तक लोग इससे संक्रमित हो जाते हैं।
इस बीमारी का अब तक का सबसे बड़ा प्रकोप वर्तमान मे जारी है; 2014 मे पश्चिम अफ्रीका इबोला प्रकोप, जिसमें गुआना, सिएरा लियोन, लाइबेरिया और नाइजीरिया प्रभावित हैं। अगस्त 2014 तक 1600 से अधिक मामलों की पहचान की गई है। इसके लिए टीका विकसित करने के प्रयास जारी हैं; हालांकि अभी तक ऐसा कोई टीका मौजूद नहीं है।
यह बीमारी सक्रामक है लेकिन अन्य वायरस जनित बीमारी जैसे HIV, SARS, खसरे से कम है.

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