यह तस्वीर सोलर डायनेमिक्स ओबजरवेटोरी द्वारा छ: दिसंबर 2012 को 17:50 UT पर ली गयी है। यह सूर्य से समय समय पर निकलने वाली सौर ज्वाला है। यह सौर ज्वाला 10 लाख किमी मे फैली हुयी है। ध्यान रहे इस तस्वीर पर पृथ्वी की लंबाई चौड़ाई एक नन्हे बिंदु से ज्यादा नही होगी ! पृथ्वी का व्यास लगभग 12,750 किमी है।
सूर्य के वर्णमंडल(Chromosphere) का पदार्थ कभी-कभी तीव्र गति से ऊपर उठता हुआ, कभी कभी घने मेघों के जैसे वर्णमंडल के ऊपर छाया हुआ और कभी कभी वर्णमंडल की ओर नीचे गिरता हुआ दृष्टिगत होता है। वर्णमंडल के ऊपर उठी हुई गैसों की ये लपटें सौरज्वाला कहलाती हैं। सौरज्वालाएँ अनेक आकार एवं विस्तार में प्रकट होती हैं। सौरज्वाला कोमल धागों की गुथी हुई गुच्छियों (केशो की चोटी) जैसी लगती है। पूर्ण रूप से विकसित सौरज्वाला गैसों का एक तंतु(filament) होता है, जो औसतन् 20,00,000 किलोमीटर लंबा, 4,000 किमी. ऊँचा और 6,000 किलोमीटर के लगभग मोटा होता है। सूर्यबिंब के कोर पर सौरज्वालाएँ चाप(arc) के आकार की दिखाई देती हैं। सौरज्वाला में पदार्थों की गति ठीक फव्वारे के जैसे होती है। 4 जून 1946 ई. को ठीक सूर्योदय के समय सूर्यबिंब की कोर पर प्रज्वलित गैस एक विशाल चाप के आकार में प्रकट हुई जिसकी ऊँचाई लगभग, 6,400 किलोमीटर थी। देखते ही देखते लगभग 33 मिनटों में इसकी ऊँचाई 4,00,000 किलोमीटर हो गई। सौरज्वाला की ऊँचाई लगभग 64,00,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से बढ़ती गई और प्रथम निरीक्षण के 1 घंटे 20 मिनट के पश्चात् चाप इतना ऊपर उठ गया कि वह दूरबीन के प्रेक्षण क्षेत्र मे समा नही पा रहा था। यह असंभव नहीं है कि यह चाप सूर्य के व्यास की ऊँचाई से भी ऊँचा उठ गया हो।
सौर ज्वालाओं को लक्षण और विकास के विचार से निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जाता है :
(1) सक्रिय (Active), (2) उद्गारी (Eruptive), (3) कलंक संबंधी, (4) सौरज्वाला भँवर (Torando), (5) शांत, तथा (6) किरीटीय।
इन वर्गों के नाम उनके लक्षणों के द्योतक हैं। इनमें से कुछ का वर्णन निम्नलिखित है :
(1) सक्रिय सौरज्वाला के तीन अंतर्विभाग हैं :
अंतरासक्रिय,
साधारण सक्रिय तथा
किरीटीय
अंतरासक्रिय सौरज्वाला दो या दो से अधिक सौरज्वालाओं का समूह होता है; साधारण सक्रिय सौर ज्वाला लिपटे हुए तंतुओं एवं ग्रंथियों के रूप में होती है; किरीटीय सक्रिय सौर ज्वाला किरीट के बाह्य खंडों से आती हुई दिखाई देती है।
(2) उद्गारी सौर ज्वाला, गैसीय वर्णमंडल की ओर जाती हुई दृष्टिगत होती है।
(3) सूर्यकलंक संबंधी सौर ज्वाला, सौर कलंकों के ऊपर विद्यमान रहती है। पटी ने इन्हें नौ वर्गों में विभक्त किया है, जो आकार और अन्य लक्षणों में एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
(4) सौर ज्वाला भँवर, तूफान में देखे जाते हैं और शंकु के आकार के होते हैं। अभी तक यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि किन बलों के कारण ये भँवर कई मास तक स्थायी रहते हैं। इनके संबंध की अनेक बातों के, जैसे सूर्य कलंक से संबंधित इनके आकार तथा रूप, ऊपर उठानेवाला बल आदि, के बारे में कुछ नही कहा जा सकता है।
सौर ज्वाला के पदार्थों का घनत्व किरीटीय पदार्थों के घनत्व से लगभग 10 गुना तथा ताप 1/200 गुना होता है। सौरज्वाला की गति का रहस्य अभी तक पूर्ण रूप से समझा नहीं जा सका है।

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